तेरे बिना सुनी-सुनी रतियाँ गुजारी है ,
खुद से ही कर-कर बतियाँ गुजारी है ;
सुना है पलंग घर - बार सब सुने है ,
सुना ये जहाँ दिन रात सब सुने है ;
घर दफ्तर से बाजार सब सुने है ,
सोमवार से रविवार सब सुने है ;
मेरे घर आने तक सज-धज जाती थी,
आईने को देख शरमाती घबराती थी ;
जब दरवाजे से आवाज मैं लगाता था ,
दरवाजा खोलने को दौड़ी चली आती थी ;
स्वागत मे मेरे होले से मुस्काने की,
नज़रें झुका के वो अदाएं शरमाने की ;
कर के बहाने मेरे टाई खोलने की ,
बाँहों में लिपट कुछ देर रुक जाने की ……।