समझ पाते तुम्हारे प्यार की
गहराइयों को हम ,
मिलती नहीं तन्हाइयाँ
मिलते नहीं ये गम ;
एक हादसा था वो
तुझे ठुकरा दिया हमने,
तुम्हारी याद में दिन-रात
अब तो रो रहें हैं हम ;
नहीं है याद कोई पल
कि तेरी याद ना आई ,…।
ना कोई रात ही आई कि
जब तड़पे नही हो हम ;
खो कर तुम्हारे प्यार को
अब जान पाये तो ,
खुद से बनाये हाल पर
पछता रहे हैं हम ;
थोडा भी इन्तजार तेरा
कर नहीं पाये ,
आशिकी के इम्तेहान से
गुजर नही पाये ;
मजबूर थे हालात तेरे
जान पाते तो ,
मिलती नही जो आज है
तन्हाइयों का गम।
(कवि मनीष सोलंकी )
सुख-दुख के आँसू मे तू अंतर बतला दे, बहते हैं नयानो से ही, तू घर बतला दे; दोनो मे ही लवन घुले हैं, माप बता दे, गालों पर कैसा है उनका, छाप बता दे। दुख मे मन हल्का होता है , सुख मे उसका काम बता दे ; बता सके तो दोनो का तू , अलग -अलग दो नाम बता दे। प्रसव-पीड़ा मे मामतामय प्यार के आँसू, दुल्हन के दो अलग-अलग संसार के आँसू; बता सके तो तू इनमे अंतर बतला दे, बहते हैं नयनो से ही तू घर बतला दे।