लॉकडाउन में बइठल-बइठल


लॉकडाउन में बइठल-बइठल देह भईल बा जाम,
समझ न आबे अब हमरा के कैसे होई काम।
तीन महीना बइठल खइलीं,खेललीं आदा-पादा,
चौका बरतन मिल के कइलीं,का नर,का मादा।
झरल रूपईया-पैसा सभे, थोड़ बहुत जे रहल,
अब न घर में कबहुँ हमरा रहे चहल-पहल।
छूटल नोकरी मिलल न, मिलल गाढ़ उपदेश,
कहलन तारणहार,आत्मनिर्भर अब होईहें देश।
पहिले कहलन सब सम्हार लेव,दुख न होई जादा,
अब बुझाल कि कुर्सी वाला कइलस झूठा वादा।
कोरोना के डर से नोकरी तबहुँ बाद में छूटल,
पहिले तो इनके कहला पर थरिया-लोटा फूटल।
का होई, कईसे होई, अब कुछ नईखे बुझात,
केकर पेट भरी एतना में, एके मुठ्ठी भात।