अचरज


ना सोचा ना समझा ना देखा किसी ने
ना सुन ही सका ना ही जाना किसी ने
मगर दोस्तों ये कहानी है सच्ची
देखा है खुद अपनी आँखों से मैंने
जो देखा तो आँखें खुली रह गई
मेरी साँसे रुकी की रुकी रह गई 
उसकी गलियों पे नज़र टिक गई
और चिकनाइयों पे फिसल भी गई
बड़ी मुश्किल से तब तो घड़ी आ गई
क्या कहूँ दिल को कैसे संभाला था मैंने
बात ये है कि,
आम से खटाई बनाते तो सब हैं
लेकिन ,
खटाई को आम होते देखा है मैंने।   

(कवि मनीष सोलंकी )