जीवन ; एक संघर्ष



यह जीवन एक संघर्ष है
मैं जूझ रहा हूँ अरसों से,
सब कहते थे कि हारोगे
पर,जीत रहा हूँ वर्षों से।
राहों में कांटे मिलते हैं
फिर भी चलते जाता हूँ मैं,
दर्द तो होता है लेकिन
फिर भी न घबराता हूँ मैं।
खुशियों की घड़ियाँ आती हैं
आ के हमको बहकाती हैं,
जो फूल भी मिल जाते हैं तो
फिर भी न इतराता हूँ मैं।
कहती है दूनियाँ छोड़ दो कर्म
आ के मुझमें जाओ तुम रम,
देखो मेरा रंगीला तन
कभी फागुन तो,कभी है सावन।
मैं कहता हूँ इस दुनियाँ को
बिन धौंकनी के हरमुनियाँ को,
तुम क्या जानो, क्या है जीवन
क्या फागुन है,क्या है सावन।
हर साल ही फागुन आता है
हर साल ही सावन आता है,
पर, जीवन है कि किसी तरह
और कभी-कभी मिल पाता है।
इसलिए तो कहता हूँ यारोँ
बस कर्म तू अपना कर,
दुःख आये तो न घबराओ
यह जीवन है संघर्ष।
(कवि मनीष सोलंकी)