बदहाल

बैसाखी पे चलती ये सरकार निराली है ,
 सोने की चिड़िया की अब तो हालत माली है ;
 बदहाली को आज 'सोलंकी ' वयां करे क्या ख़ाक कहो ,
 हक़ मांगे हर कोई जैसे सबकी साली है;
 संप्रभुता संविधान की शोभा बढ़ा रही केवल ,
 अदना सा दुश्मन भी गाल पे देता ताली है ;
 भाषणबाजी अब्बल नेताओं की भरमार यहां ,
 गौर से देखो तो सबकी करतूतें काली है।

                                                                                 (कवि मनीष सोलंकी)