आज खुशी का उत्सव है
मस्त मग्न दिल झूम रहा ,
वो पास हमारे आएं हैं
जिनको कबसे था ढूंढ रहा ;
जबसे हुए थे रुक्सत मुझसे
अँधेरा संसार हुआ
आज जो आये पास मेरे
दिल बाग़ मेरा गुलजार हुआ ;
दिन लगते थे माह जैसे
और महीने साल
कैसे मैं बतलाऊं कि
कैसा था मेरा हाल ;
कितना आनंदित हूँ मैं
किन शब्दों में इजहार करूँ
समझ नहीं आता है उनकी
पूजा करूँ या प्यार करूँ ;
चाहत थी दिल में जिसकी
आज वही संसार मिला
दिल झूम रहा दिल नाच रहा
कि मुझको मेरा प्यार मिला।
( कवि मनीष सोलंकी )
मस्त मग्न दिल झूम रहा ,
वो पास हमारे आएं हैं
जिनको कबसे था ढूंढ रहा ;
जबसे हुए थे रुक्सत मुझसे
अँधेरा संसार हुआ
आज जो आये पास मेरे
दिल बाग़ मेरा गुलजार हुआ ;
दिन लगते थे माह जैसे
और महीने साल
कैसे मैं बतलाऊं कि
कैसा था मेरा हाल ;
कितना आनंदित हूँ मैं
किन शब्दों में इजहार करूँ
समझ नहीं आता है उनकी
पूजा करूँ या प्यार करूँ ;
चाहत थी दिल में जिसकी
आज वही संसार मिला
दिल झूम रहा दिल नाच रहा
कि मुझको मेरा प्यार मिला।
( कवि मनीष सोलंकी )