इश्क़ घटनाक्रम

घटा सी काली जुल्फें जिसकी
मदिरारुं उन्माद नयन
पान पात्र से होंठ हों जिसके
रजत रचित सा तन;

ऐसी ही सुंदर एक नवला
मेरे दिल में रहती थी
रोज मेरे सपनों में आकर
मुझसे वो ये कहती थी।

आजा मेरे मोहन प्यारे
मैं हूँ तेरी राधा
बिना एक दूसरे के
हम हैं आधा -आधा ;
   
फिर यूं नाक सिकोड़ा उसने
जैसे कोई गोबर हूँ मैं
फटकारा उसने यूं मुझको
जैसे कोई लोफ़र हूँ मैं ;

अब कैसे समझाता यारों
कि मैं कैसा आदमी हूँ
सच नहीं है जो समझ रही हो
लोफ़र नहीं मैं प्रेमी हूँ ;

वो बोली मुझको पढ़ना है
जीवन में आगे बढ़ना है  
पीछे अब ना रहना है
हर दम ऊपर चढ़ना है।;

गुस्सा आया मुझको बहुत
उसकी बातें सुन-सुनकर
सोचा तो कि बोल दूँ उसको
मै भी थोड़ा इस कदर ;

पीछे की कोई बात नहीं
हरदम आगे ही रखूंगा
चाह नहीं है नीचे की तो
मैं ही नीचे रह लूंगा;

लेकिन बोल ना पाया कुछ भी
बूत बना बस खड़ा रहा
वो डांटती रही ,मैं सुनता रहा
बस चेहरा उसका देखता रहा ;
संगम हुआ ना उसका मेरा
रही अधूरी चाहत मेरी
चैन मिला ना तब से तक
मेरे इस प्रणयातुर उर को;

कैसी निर्मम है वो सोचो
जिसने ठुकराया है मुझको
छोर दिया यूं क्रंदन करते
मेरे इस प्राण्यातुर उर को ;

 रोता है ये दिल विह्वल हो   
 उसकी यादों में निसि वसर
बहते हैं आँखों से हर पल
निर्झर जल से आँसूं झरझर।  

(कवि मनीष सोलंकी )