आज का विचार

कहने को तो भारत में लकतंत्र है;विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र परंतु,ऐसा लगता है कि विश्व का सबसे बड़ा संविधान मात्र ही यहाँ है। क्योंकि, चुनावी मौसम को छोड़कर न तो कभी लोकतांत्रिक हवाएँ चलती हैं और न कोई लोकतांत्रिक दृश्य ही देखने को मिलता है।और, इसका सबसे बड़ा कारण है, भारतीय जनता की मानसिकता। जिसके कारण इनकी लोकतंत्र में भागीदारी केवल चुनावी मौसम तक ही होती है। यहाँ लोगों कि मानसिकता बन गई है कि मतदान करने भर ही उनका उत्तरदायित्व है। उसके बाद जो भी करना है, चुनी गई सरकार करेगी। चाहे अच्छा करे या बुरा। संप्रति (वर्तमान) केंद्र सरकार की बात की जाए तो दिल्ली सल्तनत का एक बहुचर्चित शासक की याद आती है-"मुहम्मद बिन तुगलक" की। पूर्णतः अशांत और अनियंत्रित। अंतर मात्र इतना ही है कि तब सरकार राजतंत्र के नाम से चलती थी और अभी लोकतंत्र के नाम से चलती है। और सब समान है। तब भी जनता को लगता था कि सरकार कुछ कर रही है, और अब भी वही लगता है परंतु, कर क्या रही है और क्या परिणाम होंगे, यह तब भी लोग नहीं समझ पाए थे और अब भी नहीं समझ पा रहे हैं। इन दोनों के तुल्नात्मक आध्ययन के लिए दनों के बारे में कुछ बातों का ज्ञान आवश्यक है। आईए जानते हैं कुछ बातें इन दोनों के बारे में- 🚫मुहम्मद बिन तुगलक - ➖मुहम्मद बिन तुगलक का वास्तविक नाम उलूग खाँ था। राजमुंदरी अभिलेख में उसे जौना या जूना खाँ कहा गया है। ➖संभवतः मध्यकालीन सभी सुल्तानों में मुहम्मद बिन तुगलक सबसे शिक्षित एवं योग्य व्यक्ति था,परंतु अपनी सनक भरी योजनाओं, क्रूर-कृत्यों एवं दूसरे के सुख-दुख के प्रति उपेक्षा का भाव रखने के कारण इसे स्वप्नशील,पागल एवं रक्त पिपासु कहा गया है। ➖सिंहासन पर बैठने के बाद तुगलक ने अमीरों एवं सरदारों को विभिन्न उपाधियाँ प्रदान किया।उसने तातार खाँ को 'बहराम खाँ' की उपाधि,मलिक क़ाबुल को 'इमाद-उल-मुल्क' की उपाधि एवं 'वजीर-ए-मुमालिक'का पद दिया था पर,कलांतर में उसे 'खानेजहाँ' की उपाधि के साथ गुजरात का हाकिम बनाया गया। उसने मलिक अरूयाज को 'ख्वाजा जहान'की उपाधि के साथ शहना-ए-इमारत का पद,मौलाना ग्यासुद्दीन को 'क़ुतुलुग ख़ाँ' की उपाधि के साथ वकील-ए-दर की पदवी, अपने चचेरे भाई फ़िरोजशाह तुगलक को नायब बारबक का पद प्रदान किया था। ➖उसने अपने पद के प्रारंभ में ख़लीफ़ा से स्वीकृति नहीं ली थी और न ही उलेमा से ही यद्यपि बाद में ऐसा करना पड़ा। उसने न्याय विभाग पर उलेमा वर्ग का एकाधिपत्य समाप्त किया। काज़ी के जिस फैसले से वह संतुष्ट नहीं होता था, उसे बदल देता था। ➖मुहम्मद तुगलक के सिंहासन पर बैठने के समय दिल्ली सल्तनत कुल २३ प्रांतों में विभाजित था, जिनमें मुख्य थे- दिल्ली,देवगिरी,लाहौर,मुल्तान,सरमुती,गुजरात,अवध,कन्नौज,लखनौती,बिहार,मालवा,जाजनगर (उड़ीसा),द्वारसमुद्र आदि। कश्मीर एवं बलुचिस्तान भी दिल्ली सल्तनत में शामिल थे। दिल्ली सल्तनत की सीमा का विस्तार इसी के काल में सर्वाधिक हुआ। परंतु इसकी क्रूर नीतियों के कारण राज्य में विद्रोह आरंभ हो गया। जिसके फलस्वरूप दक्षिण में स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ और बंगाल भी अलग हो गया।
➖मुहम्मद बिन तुगलक ने कुछ नई नीतियाँ भी बनाई; जैसे- दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि(१३२६-२७ ई०),राजधानी परिवर्तन (१३२६-२७ ई०),सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन(१३२९-३० ई०),खुरासन एवं कराचिल का अभियान आदि। 🚫संप्रति सरकार-

ये वो राजपुताना है

राजस्थान में राजपूतों पर हो रहे अत्याचार भाजपा सरकार सोंची समझी साजिश है। इन्हें हमेशा एक मुद्दे की जरूरत पड़ती है लोगों को उलझाने के लिए।पहले हिंदु-मुसलमान और अब ऊँची और नीची जाति जैसे मुद्दे की भी तैयारी चल रही है।और, जो इनका विरोध करेगा, उसका वही हाल होगा जो अनंदपाल का हुआ।
लेकिन अब इनकी ये चाल और अधिक नहीं चलेगी।देश के सभी राजपूतों तक इनके घिनौने करतूतों का संदेश पहुँचा है।
इन निम्न कोटि के शासकों/राजनेताओं को एक संदेश मैं अपनी इन पंक्तियों के माध्यम से दे रहा हूँ__


सत्ता, शासन, राजकर्म से रिश्ता बहुत पुराना है,
जिसकी वीरता का समस्त विश्व ने लोहा माना है,
करता आया भारत भूमि की सेवा जो सदियों से,
मत भूलो ऐ तुच्छ शासकों ये वो राजपुताना है।
जिसने स्वाभिमान के लिए शीश कटाना जाना है,
प्रजा का हित परम कर्म है जिसने ऐसा माना है,
जिसने पर स्त्रियों को माताओं सा सम्मान दिया,
मत भूलो ऐ तुच्छ शासकों ये वो राजपुताना है।
पूछ रहा हूँ एक सवाल, प्रथम यही और अंतिम भी,
बंद करोगे अत्याचार या इतिहास दुहराना है ?
लाखों पृथ्वीराज अभी और लाखों ही महाराणा हैं,
मत भूलो ऐ तुच्छ शासकों ये वो राजपुताना है।