पश्चाताप

समझ पाते तुम्हारे प्यार की गहराइयों को हम , मिलती नहीं तन्हाइयाँ मिलते नहीं ये गम ; एक हादसा था वो तुझे ठुकरा दिया हमने, तुम्हारी याद में दिन-रात अब तो रो रहें हैं हम ; नहीं है याद कोई पल कि तेरी याद ना आई ,…। ना कोई रात ही आई कि जब तड़पे नही हो हम ; खो कर तुम्हारे प्यार को अब जान पाये तो , खुद से बनाये हाल पर पछता रहे हैं हम ; थोडा भी इन्तजार तेरा कर नहीं पाये , आशिकी के इम्तेहान से गुजर नही पाये ; मजबूर थे हालात तेरे जान पाते तो , मिलती नही जो आज है तन्हाइयों का गम। (कवि मनीष सोलंकी )