विनय



धूल बनकर ताउम्र
चरणो में रहूँ तेरी
हे प्रभु तुझसे तो बस
इतनी विनय है मेरी।

कुछ और मै ना देखूं
कुछ और मै ना सोचू
संसार सार भूलूँ ,
चरणो को तेरे छूं लूँ।

रखो हमे अछूता ,
है बुराइयों की ढ़ेरी
हे प्रभु तुझसे तो बस
इतनी विनय है मेरी।

भूलूँगा जमाने को
दौलत के दिवाने को
भक्तों की डायरी में
मेरा भी नाम लिख लो।

क्यों हमें भेजा यहाँ ?
क्या खता थी मेरी ?
छल, दुएश्,दंभ पाखंड है ,
और दुःख है वेरी -वेरी।

( कवि मनीष सोलंकी )