पत्नी - देवी

रात को देर से घर आया तो पत्नी बैठी थी मुँह फुला के ,
मुझे लगा इतनी मोटी हो गई दिन भर में खा -खा के ;
मैंने जाते ही डाइटिंग की सलाह दी ,
कहा -इतनी मत खाओ तेल और तेल और घी ;
सुनकर मेरा सलाह उठकर हो गई खड़ी ;
देखते ही देखते बेलन लेकर मुझपर टूट पड़ी ;
पूछने लगी कलमुंहे तू आज -कल क्या करता ?
शाम को छुट्टी मिलती है ,इतनी रात तक कहाँ रहता है ?
तेरा किसी से चक्कर है जरूर क्यूंकि ,
तेरा ऑफिस तो है न इतनी ;
बेलन को मेरे पेट में भोंकने लगी ,
निशाना चूका और मेरी जान निकल गई।

                                                                       कवि मनीष सोलंकी