आज का विचार
कहने को तो भारत में लकतंत्र है;विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र परंतु,ऐसा लगता है कि विश्व का सबसे बड़ा संविधान मात्र ही यहाँ है। क्योंकि, चुनावी मौसम को छोड़कर न तो कभी लोकतांत्रिक हवाएँ चलती हैं और न कोई लोकतांत्रिक दृश्य ही देखने को मिलता है।और, इसका सबसे बड़ा कारण है, भारतीय जनता की मानसिकता। जिसके कारण इनकी लोकतंत्र में भागीदारी केवल चुनावी मौसम तक ही होती है। यहाँ लोगों कि मानसिकता बन गई है कि मतदान करने भर ही उनका उत्तरदायित्व है। उसके बाद जो भी करना है, चुनी गई सरकार करेगी। चाहे अच्छा करे या बुरा। संप्रति (वर्तमान) केंद्र सरकार की बात की जाए तो दिल्ली सल्तनत का एक बहुचर्चित शासक की याद आती है-"मुहम्मद बिन तुगलक" की। पूर्णतः अशांत और अनियंत्रित। अंतर मात्र इतना ही है कि तब सरकार राजतंत्र के नाम से चलती थी और अभी लोकतंत्र के नाम से चलती है। और सब समान है। तब भी जनता को लगता था कि सरकार कुछ कर रही है, और अब भी वही लगता है परंतु, कर क्या रही है और क्या परिणाम होंगे, यह तब भी लोग नहीं समझ पाए थे और अब भी नहीं समझ पा रहे हैं। इन दोनों के तुल्नात्मक आध्ययन के लिए दनों के बारे मे...