अब कहाँ
अब कहाँ है मिलता ईश्वर-अल्लाह में विश्वास अटूट ,
ईसा और गुरु गोविन्द से भी विश्वास रहा है उठ ;
श्रद्धा नहीं दिखती है पहले जैसे अब के लोगों में ,
सोंच है शायद अब लोगों का क्या रखा है देवों में ;
दुनियाँ के इस भूल-भुलैया में ही घूम रहे हैं लोग ,
धर्म-कर्म कुछ नहीं जानते , धन का बस जकड़ा है लोभ ;
माता-पिता को बोझ समझते, दुश्मन यहाँ पे भ्राता है ,
पति और पत्नी में अब तो बस शरीर का नाता है.
( कवि मनीष सोलंकी )
ईसा और गुरु गोविन्द से भी विश्वास रहा है उठ ;
श्रद्धा नहीं दिखती है पहले जैसे अब के लोगों में ,
सोंच है शायद अब लोगों का क्या रखा है देवों में ;
दुनियाँ के इस भूल-भुलैया में ही घूम रहे हैं लोग ,
धर्म-कर्म कुछ नहीं जानते , धन का बस जकड़ा है लोभ ;
माता-पिता को बोझ समझते, दुश्मन यहाँ पे भ्राता है ,
पति और पत्नी में अब तो बस शरीर का नाता है.
( कवि मनीष सोलंकी )