इजहार-३

न हमसे युं नजरें चुराया करो,
दीवाना हूँ मैं, दिल लगाया करो;
तू माशुक है मेरी, मैं आशिक हूँ तेरा,
तुम्हारे सिवा कोई अपना न मेरा;
यूँ मुझको नहीं ठुकराया करो,
दीवाना हूँ मैं, दिल लगाया करो;
मैं मजनु तू लैला, तू हीर मैं राँझा,
मैं आशिक हूँ तेरा, मेरे पास आ जा;
इतना नहीं शरमाया करो,
दीवाना हूँ मैं, दिल लगाया करो;
ये दिल में जगी प्यास कैसे बुझाऊँ ,
आती हो तुम या मैं ही आ जाऊँ ?
न चढ़ती जवानी गँवाया करो ,
दीवाना हूँ मैं, दिल लगाया करो। (कवि मनीष सोलंकी )

जीवन ; एक संघर्ष पेट की खातिर
इजहारइजहार-२
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