विवाह

न जिस्मों का रिश्ता है ये , न सामाजिक बन्धन है ;
हमारी संस्कृति में विवाह, दो आत्माओं का संगम है।
नहीं टिका होता है , चार गवाहों के बलबूते ;
और नहीं होता है , चंद दिनों के खातिर ये।
जनम-जनम के लिए, दोनों मिल जाते हैं ऐसे;
नदी और सागर के जल, मिल जाते हों जैसे।
इस पवित्र संगम के मध्य, जात-पात की खाई कैसी;
पता नहीं क्या भारत तुझको , रूहों की जाति नहीं होती ?

                                                                                

जीवन ; एक संघर्ष पेट की खातिर
इजहारइजहार-२
इजहार-३ ब्रेकअप पार्टी
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बदहाल पश्चाताप
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ग़ज़ल जननी
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