न जिस्मों का रिश्ता है ये ,
न सामाजिक बन्धन है ;
हमारी संस्कृति में विवाह, दो आत्माओं का संगम है।
नहीं टिका होता है , चार गवाहों के बलबूते ;
और नहीं होता है , चंद दिनों के खातिर ये।
जनम-जनम के लिए, दोनों मिल जाते हैं ऐसे;
नदी और सागर के जल, मिल जाते हों जैसे।
इस पवित्र संगम के मध्य, जात-पात की खाई कैसी;
पता नहीं क्या भारत तुझको , रूहों की जाति नहीं होती ?
हमारी संस्कृति में विवाह, दो आत्माओं का संगम है।
नहीं टिका होता है , चार गवाहों के बलबूते ;
और नहीं होता है , चंद दिनों के खातिर ये।
जनम-जनम के लिए, दोनों मिल जाते हैं ऐसे;
नदी और सागर के जल, मिल जाते हों जैसे।
इस पवित्र संगम के मध्य, जात-पात की खाई कैसी;
पता नहीं क्या भारत तुझको , रूहों की जाति नहीं होती ?