नारी

नारी जननी है, उससे ही संचालित संसार है;
पालनहार वाही है , उसकी महिमा अपार है;
कभी रूप माँ का लेती है, कभी बहन बन जाती है;
और, कभी पत्नि बनकर, हमको जीना सिखलाती है;
जीवन रथ के पहिए में, नारी जैसे धूरा है ;
नारी बिना जिंदगी का, मतलब ही अधूरा है।

                                                                           ( कवि मनीष सोलंकी)

जीवन ; एक संघर्ष पेट की खातिर
इजहारइजहार-२
इजहार-३ ब्रेकअप पार्टी
विवाह वासना की उपासाना
नारी देश के दुश्मन
कि जो तु मुस्कुराती है अब कहा
ऐसी जुदाई क्या खूब लड़े नैना मेरे
बदहाल पश्चाताप
पत्नी - देवी उमंग
Desire इश्क घटनाक्रम
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व्यथा मुझको मेरा प्यार मिला
जुल्फों के जूं अधूरे सपने
निराशा सखे
ग़ज़ल जननी
मैं कलाकार, संगमरमर बदन