नारी जननी है,
उससे ही संचालित संसार है;
पालनहार वाही है , उसकी महिमा अपार है;
कभी रूप माँ का लेती है, कभी बहन बन जाती है;
और, कभी पत्नि बनकर, हमको जीना सिखलाती है;
जीवन रथ के पहिए में, नारी जैसे धूरा है ;
नारी बिना जिंदगी का, मतलब ही अधूरा है।
( कवि मनीष सोलंकी)
पालनहार वाही है , उसकी महिमा अपार है;
कभी रूप माँ का लेती है, कभी बहन बन जाती है;
और, कभी पत्नि बनकर, हमको जीना सिखलाती है;
जीवन रथ के पहिए में, नारी जैसे धूरा है ;
नारी बिना जिंदगी का, मतलब ही अधूरा है।
( कवि मनीष सोलंकी)