अब कहाँ

अब कहाँ अब कहाँ है मिलता ईश्वर-अल्लाह में विश्वास अटूट ,
ईसा और गुरु गोविन्द से भी विश्वास रहा है उठ ;
श्रद्धा नहीं दिखती है पहले जैसे अब के लोगों में ,
सोंच है शायद अब लोगों का क्या रखा है देवों में ;
दुनियाँ के इस भूल-भुलैया में ही घूम रहे हैं लोग ,
धर्म-कर्म कुछ नहीं जानते , धन का बस जकड़ा है लोभ ;
माता-पिता को बोझ समझते, दुश्मन यहाँ पे भ्राता है ,
पति और पत्नी में अब तो बस शरीर का नाता है.

                                                                         ( कवि मनीष सोलंकी )

जीवन ; एक संघर्ष पेट की खातिर
इजहारइजहार-२
इजहार-३ ब्रेकअप पार्टी
विवाह वासना की उपासाना
नारी देश के दुश्मन
कि जो तु मुस्कुराती है अब कहा
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बदहाल पश्चाताप
पत्नी - देवी उमंग
Desire इश्क घटनाक्रम
बसंती हवा अचरज
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जुल्फों के जूं अधूरे सपने
निराशा सखे
ग़ज़ल जननी
मैं कलाकार, संगमरमर बदन