इस कदर मेरे प्यार का,
इम्तहाँ न लीजिए,
आप पर फ़िदा ये दिल है ,
अपना भी दिल दीजिये;
होंठ क्यों खामोश हैं ,
आँखें हैं झुकी-झुकी ,
केंसुओं के बिखरेपन में,,
लगती हैं बुझी-बुझी ;
आप के हँसी के बिन,
ये सूना-सूना महफ़िल है,
आपके बिना ओ जानम,
खाली-खाली ये दिल है ;
ख़फ़ा क्यों हैं आप मुझसे,
वयाँ भी तो कीजिए ,
आप पर फ़िदा ये दिल है,
अपना भी दिल दीजिए ;
आपके रूठे हुए अब,
हो गए हैं चार दिन ,
इस कदर जो रूठी रहीं ,
मर जाऊँगा मौत बिन;
दिल लगाया आप से है,
चाहता हुँ आप को ,
आप के सिवा अब कैसे,
देखूँ किसी और को ;
मेरी इस हालात को,
मज़ाक में ना लीजिए,
आप पर फ़िदा ये दिल है,
अपना भी दिल दीजिए।
(कवि मनीष सोलंकी )
इम्तहाँ न लीजिए,
आप पर फ़िदा ये दिल है ,
अपना भी दिल दीजिये;
होंठ क्यों खामोश हैं ,
आँखें हैं झुकी-झुकी ,
केंसुओं के बिखरेपन में,,
लगती हैं बुझी-बुझी ;
आप के हँसी के बिन,
ये सूना-सूना महफ़िल है,
आपके बिना ओ जानम,
खाली-खाली ये दिल है ;
ख़फ़ा क्यों हैं आप मुझसे,
वयाँ भी तो कीजिए ,
आप पर फ़िदा ये दिल है,
अपना भी दिल दीजिए ;
आपके रूठे हुए अब,
हो गए हैं चार दिन ,
इस कदर जो रूठी रहीं ,
मर जाऊँगा मौत बिन;
दिल लगाया आप से है,
चाहता हुँ आप को ,
आप के सिवा अब कैसे,
देखूँ किसी और को ;
मेरी इस हालात को,
मज़ाक में ना लीजिए,
आप पर फ़िदा ये दिल है,
अपना भी दिल दीजिए।
(कवि मनीष सोलंकी )